bhoot pret ko bas me karne ka mantra

 bhoot pret ko bas me karne ka mantra या भूत प्रेतों को वश में करने का यंत्र:-

 bhoot pret ko bas me karne ka mantra
  bhoot pret ko bas me karne ka mantra

नमस्कार दोस्तों एक बार फिर से स्वागत है ,वैसे तो तांत्रिक विद्या में कोई भी कार्य सिद्ध होने पर आप उसे आसानी से कर सकते है लेकिन कुछ बड़े तांत्रिक होते है जो फजूल की आत्माओ और भूतो को बस में करके अपना काफी कार्य आसानी से करा सकते है। भूतो से काम करना आसान होता  लेकिन ये गंदे या काफी डरावने होते है और यदि इनको बस में ना रखा जाय तो अपने सेवक पर आकरमर या नुक्सान पहुंचने में पीछे नहीं हटते है। 

  bhoot pret ko bas me karne ka mantra सामग्री:-

एक नीबू ,प्लास्टिक की गिलास , सफ़ेद कागज,

  bhoot pret ko bas me karne ka mantra समय:-

रात्री में 12 बजे
 bhoot pret ko bas me karne ka mantra
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  bhoot pret ko bas me karne ka mantra स्थान:-

शमशान में पीपल के वृक्ष के नीचे

  bhoot pret ko bas me karne ka mantra विधी:-

इस यंत्र को बनाने के लिए आप सबसे पहिले बताई हुईं सामग्री को एक दिन पहले रख ले, अगले दिन शनिवार या मंगलवार के दिन रात्री में 12 बजे इस यंत्र को शमशान में पीपल के वृक्ष के नीचे काले आसन पर बैठ कर अपना मुख दक्षिण दिशा की तरफ कर ले निबू को काटकर उसे गिलास में रस निकाल लें।
अब बताए हुए यंत्र को उंगली की सहायता से सफ़ेद कागज पर बनाए और इसे पीपल की जड़ में गाड़ दें और 21  वहीं रहने दे।
जब दिन पूरे हो जाए तब इसे अपने पास रखे ऐसा करने पर शमशान की सारी डाकनिया यंत्र जिसके पास रहेगा उसके पास आजाएंगी।
 bhoot pret ko bas me karne ka mantra
  bhoot pret ko bas me karne ka mantra

  bhoot pret ko bas me karne ka mantra सावधानियां:-

* इस यंत्र को तभी बनाने की कोशिश करें जब इसकी जरूरत हो डाकनियो के बारे में पूरी जानकारी होने पर ही इसे करे।
* जब इसका इस्तमाल हो जाए तब इसे  वापस शमशान में उसी स्थान पर गाड़ दें और जब इसकी जरूरत हो।        वापस निकाल कर अपना काम कर सकते है।
* पारिवार वाले  इंसान को यह सब नहीं करना  चाहिए।
 bhoot pret ko bas me karne ka mantra
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गायत्री महिमा
मंत्र :- ॐ भूर्भुवस्वः तत्स्वितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।
गोपथ ब्राह्मण के पूर्व भाग प्रथम पाठ की 31 से 3 कंडिका तक गायत्री मंत्र की व्याख्या है। ३१वी तथा 32 वि कंडिका में गाथा है की एक बार एकादशाक्ष मौदगल्य के यहां ग्वाल मैत्रेय अतिथि हुए मैत्रेय ने मौद्गल्य के शिष्य से खा तुम्हारा आचार्य दुर्धियान कुपढ़ है। शिष्य ने चिढ़कर अपने गुरु से यह बात कह दी। गुरुने शिष्य का अभिप्राय समझकर उससे खा की मैत्रेय का जो सर्वश्रेस्ठ शिष्य हो उसे यहां बुलाकर लाओ। शिष्य ने वेशा ही किया मौद्गल्य ने मैत्रेय के शिष्य से कहा -सौम्य !क्या बात है हमने गुरु मुख से सारे वेद पड़े है तुम्हारे आचार्य मारे संबंध में ऐसा क्यों कहे उसे इतना कह कर अपने शिष्य से कहा -हमे विश्वास है की आपके आचार्य हमारे प्रसन का उत्तर नहीं दे सकते है 'उसे इतना कहकर अपने शिष्य से कहा सौम्य !तुम ग्वाल मैत्रेय के पास जाओ और उससे सावित्री जिग्याशा कर। यदि ग्वाल मैत्रेय कुसड़ हुए तो उनसे कहना ब्रमचारि आचार्य ही ब्रह्मचारी को सावित्री का उपदेश कर और साथ ही कहना -आपने मौद्गल्य को दुर्धियान बताया था ,किन्तु आप उनके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके।

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